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राखी की याद

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अभी कल ही राखी थी.बोहोत सी यादें भी ताज़ा हुई मामाजी के घर की ,उनका छोटा सा घर तीन कमरे आँगन आँगन में हैण्ड पम्प .अभी मामीजी आवाज लगाएंगी और बोलेंगी ..... चलो बच्चों आ जाओ नाश्ता कर लो.... और हम सब मेज पर सजी थालियों पर टूट पड़े॥ मम्मी राखी से इक रोज़ पहले ही सब तयारी कर लेती थीं .मिठाई ,मठी,राखियाँ और सबके कपडों का बड़ा सा सूटकेस .मामाजी के घर भी सभी हमारा बेसब्री से इंतज़ार करते .अंतु पूनम हमे देख कर गले लग जाते.साल भर बाद जो मिलते थे .फ़िर बक बक का दौर चालू। "अरे वाह ये सूट कहाँ से ख़रीदा?" "तेरी मोतियों की माला कित्ती सुंदर है अंतु " "क्या पढ़ रही हो आज कल ?" "शाहरुख़ की नयी पिक्चर देखि??".....कई सवाल और धीर साड़ी बातें मामीजी अंतु पूनम को टोकती"अरे बस भी करो कित्ती बातें करोगे..चलो ये खालो..वोह पीलो॥ अंतु"अरे इस बार मोदी मन्दिर जायेंगे ओके ...और जैन वाले की शिकंजी बी पीयेंगे " हम हाँ में हाँ मिलाते ... दुसरे दिन ही जींस फ्रोक्क वागाहरा पहेन क रेडी हो जाते .और पैदल पैदल निकल पड़ते। थोड़ा भीड़ भाड़ वाला इलाका है मोदी नगर .वहां की आंबे

अम्मा

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अम्मा ...नाम ज़हन में आते ही इक बूढी औरत की छवि बनती मटमैला सूट पहने सफ़ेद झीनी चुन्नी ओढे.खिचे हुए कानों में बड़ी से बालियाँ ,हाथों में इक इक कडा पुरानी जूती पहने हुए हमेशा नौकरों को काम समझते हुए या ओखली में मिर्च,धनिया कूट ते हुए .साल में इक या दो ही बार मुलाकात हो पाती उनसे या तो जब छुट्टियाँ हों या फ़िर जब उनके बीमार होने की ख़बर मिले .मेरठ में चाचाजी के साथ ही मन लगता था उनका या कहें अपनी चंपा चमेली के साथ ..उनकी गाय भेंसें । पापा को जब भी ख़बर मिलती फ़ोन पर हमको भेज दिया करते कहते" जाओ तुम देख आओ ,मेरी राम राम कह देना।". मम्मी जानती थी लेने तो ख़ुद आ ही जायेंगे । इसी बहाने हमारी सैर हो जाती थी। "कैसे हो अम्माजी ,फ़ोन पे बतलाया बोहोत बीमार हो!अब ठीक हो न!"मम्मी आदर्श बहु की तरह पैर छु कर हाल चाल पूछने लगी। "आरी कुछ ना ......इन डाक्टरों की तो आदत ही है ज़रा सी परेसानी में डरा देवें हैं । तू कैसी है बचे देख कैसे सुखा रखे है सेहर में कुछ खाने पिणे को न मिलता क्या!!"हमारी तरफ़ देख कर वो अक्सर यही कहती और फिर शुरू हो जाता अंतहीन बातों का सिलसिला .हम और चचेर