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अम्मा

चित्र
अम्मा ...नाम ज़हन में आते ही इक बूढी औरत की छवि बनती मटमैला सूट पहने सफ़ेद झीनी चुन्नी ओढे.खिचे हुए कानों में बड़ी से बालियाँ ,हाथों में इक इक कडा पुरानी जूती पहने हुए हमेशा नौकरों को काम समझते हुए या ओखली में मिर्च,धनिया कूट ते हुए .साल में इक या दो ही बार मुलाकात हो पाती उनसे या तो जब छुट्टियाँ हों या फ़िर जब उनके बीमार होने की ख़बर मिले .मेरठ में चाचाजी के साथ ही मन लगता था उनका या कहें अपनी चंपा चमेली के साथ ..उनकी गाय भेंसें । पापा को जब भी ख़बर मिलती फ़ोन पर हमको भेज दिया करते कहते" जाओ तुम देख आओ ,मेरी राम राम कह देना।". मम्मी जानती थी लेने तो ख़ुद आ ही जायेंगे । इसी बहाने हमारी सैर हो जाती थी। "कैसे हो अम्माजी ,फ़ोन पे बतलाया बोहोत बीमार हो!अब ठीक हो न!"मम्मी आदर्श बहु की तरह पैर छु कर हाल चाल पूछने लगी। "आरी कुछ ना ......इन डाक्टरों की तो आदत ही है ज़रा सी परेसानी में डरा देवें हैं । तू कैसी है बचे देख कैसे सुखा रखे है सेहर में कुछ खाने पिणे को न मिलता क्या!!"हमारी तरफ़ देख कर वो अक्सर यही कहती और फिर शुरू हो जाता अंतहीन बातों का सिलसिला .हम और चचेर