Jo Hota hai ache ke liye hota hai

रजत अलमारी खोल कर जब अपने कपडे देखने लगे तो अनायास ही उनकी नज़र सुनीता की साड़ी पर चली गयी...आज १५ दिन हो गयी उससे गए पर अभी बी जैसे उसकी महक घर में रची बसी है...आशु की किलकारियाँ बरबस उसके कानो में पड़ जाती
"पापा मेरे लिए ट्रेन लाये!?"
दफ्तर से आते ही उसका यही सवाल होता/ सब कुछ ही तो ले गयी थी वो घर छोड़ के जाते वक़्त .ये साड़ी ही जाने कैसे रह गयी.
इसी साड़ी को सीने से लगाए रजत देर रात तक रोता रहा.कोन कहता है की अलग होने का दर्द सिर्फ ओरतें झेलती हैं.पर कुछ बी तो सुना ने उसने..
' कीत्नी बार कहा तुम्हे ये सरकारी नोकरी छोड़ कर प्राइवेट नोकरी क्यों ने करते!!!,में तंग आ गयी तुमसे...जब मेरे लिए ना तुम्हारे पास न वक़्त है ना पैसे तो मुझसे शादी क्यों की??'

'क्या खराबी है इस नोकरी में!मैं इतना ही कमा सकता ह..इसी में खुश रहना सीखो.'

पर वो कुछ सुनने को तैयार ही ने थी. आयेदीन इक नयी फरमाइश कभी कपडे कभी जेवर .
प्राइवेट नोकरी क्या मेरी इंतज़ार में है..में मचेने बनने को तैयार नहीं/

'अच्छा कमा ने सकते..मेरे खर्चे नहीं उठा सकते तो मेरे यहाँ रहने का कोई मतलब ही नहीं'
और रोते ही जो सामान दिखा बैग में जबरजस्ती ठूंस कर दनदनाती हुई आशु को भी मुझसे दूर ले गयी.मैंने रोकने की कोशिश नहीं की ,सोचा गुस्से में है २-४ दिन में लौट आएगी/पर जब तलाक का नोटिस दरवाज़े पर देखा तो आँखों से रुलाई छूट गयी.शादी से अब तक का साथ दीमाग में रील की तरह चलता रहा.सुनीता का ब्याह कर मेरे घर आना....आशु का जन्म ..
मन में उसके जाने से दर्द और कड़वाहट बन गयी थी.उससे बात करने की भी कोशिश की फ़ोन पर .वो बात करने को ही तैयार ने थी.आशु की दूर से ही रोते ही.'.पापा पापा..मुझे ले जाओ '
की आवाज सुने देती रही .पर सुनीता ने फोन पटक दिया
सुबह घंटी बजने से नींद खुली.आशा.कामवाली ही थी...अंदर आ कर पूछी'साब ,मेमसाब अभी तक ने आई?में नाश्ता बना दूँ!'
और में हाँ कह कर बाथरूम में चला गया.नाश्ता कर स्कूटर ले दफ्टर को चल रहा था..की अचानक लाल बत्ती देख ने पाया और कार से जा टकराया.ज़मीन पर गिर पडा और उसके बाद कुछ याद नहीं .होश आया तो अपने आप को अस्पताल में पाया ,बाएं हाथ में हड्डी टूट जाने से दर्द हो उठा .दरवाज़े से सुनीता रोते ही दौड़ी आई.'मुझे माफ़ कर दो'
''अब कयू आई हो .ये देखने की में ज़िंदा ह या नहीं??'
'ऐसा मत कहो ..मुझसे गलती हो गयी..अब से तुमसे कुछ नहीं मंगुंगी ,माफ़ कर दो'और सिसक सिसक के रोने लगी .
मैंने गले से लगा लीया 'भूल जाओ अब सब कुछ ..अब तो छोड़ के ने जाओगी!!!'
'कभी नहीं.'
और में मन मन में भगवान् का शुक्रिया अदा करने लगा.जो होता है अच्छा ही होता है.

टिप्पणियाँ

हिन्दी ब्लॉगजगत में आप का स्वागत है।
कृपया अपने टिप्पणी फार्म पर से वर्ड वेरिफिकेशन हटाएँ इस से टिप्पणी करने वाले को बहुत समस्या होती है और समय भी अधिक लगता है। इस के लिए आप अपने डैशबोर्ड में जा कर कमेंटस् में जाएँ और वहाँ वर्ड वेरिफिकेशन पर जा कर उसे नो कर दें।
धन्यवाद्
वर्ड वेरिफिकेशन हटा देने पर मुलाकात होगी।
बेनामी ने कहा…
चिट्ठी पढ़ कर लगा कि आप काफी भावुक हैं
jr... ने कहा…
ati sundar.... aam jan jeevan ki ek suparichit andaaz ko badi bariki se prastut kia hai..

aaj ke samay main jahan samaaj badal raha hai aur vivah ki paribhasa badal raha hai,aap jaise lekhako ka dayeetwa badh jata hai. aise hi likhte rahiye...


-jr
Unknown ने कहा…
बहुत उम्दा

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अम्मा

पतझड़ के बाद

राखी की याद