आलमारी का भूत
बात सन 1991 की है । हमने उस समय नया मकान लिया था । जिस पंजाबी परिवार का था वह मकान वे लोग कनाडा शिफ्ट हो गये थे । काफी फर्नीचर छोड गये जिनमे एक सोफा , एक पलंग , डैनिंग टेबल और चार कुर्सिया । एक लोहे का अलमारी भी ... सलेटी जंग लगी दिखने में ही बेहद पुरानी । हम अपने पुराने घर का सामान सेट े करने में लगे थे । मै ममी छोटी बेहेन अंजू और भाई रोबिन । तभी रोबिन दुसरे कमरे से घबराया हुआ आया बोला - वहा अलमारी से कुछ आवाज आ रही है ।
मै शंकित हुइ - अरे ऐसे ही आवाज आई होगी चुहिया होगी । पर उसकी घबराहट कम न हुई
मै - अच्छा चल देखते है
मै धीरे कदमो से दुसरे कमरे की तरफ गयी दर मुझे भी लग रहा था । मै रोबिन से बोली - आ देख कुछ नहीं है !! पर वो दरवाज़े की ओट से ही बोला -- नहीं ... नहीं । तू देख क्या है
हिम्मत करके मैंने अलमारी का हैंडल घुमाया पर दरवाजा नहीं खुला
मै चिल्लाई - लॉक है , मम्~~मी … इस अलमारी की चाभी कहाँ रखी है ?
मम्मी रसोई से ही बोली - देख बाहर टेबल पर होगी
टेबल पे 3-4 चाभी के गुच्छे रखे थे । वह सब ला के में कोशिश करने लगी की किसी तरह अलमारी खुले और पता चले । सब चाबिया देख ली पर अलमारी न खुली ।
मम्मी ने आवाज दी - चलो चाय पी लो थक गये होगे बाद में और काम भी हैं । हमने सोफे पलंग सीदा किया गद्दी बिछाये और थक के वहीँ लेट गए । मम्मी रात के खाने में जुट गयी । रोबिन मेरे पास लेटा हुआ बोला - इसी अलमारी के डर से वो लोग कनाडा भाग गये होंगे ... है ना सोनिया !
मै डांट कर बोली - चुप कर । फालतू में खुद भी डर रहा है मूझे भी डरा रहा है
अंजू - क्या हुआ ?
मैं - अरे कुछ नहीं इसको अलमारी से कूछ आवाज आया तब से पागल हो गया है ।। हुह्ह
रात खाने के बाद रोबिन अंजू से बोल - तू मेरे पास सोइयो मुझे डर लग रहा है ।
और वो अंजू का हाथ पकड़ के सो गया । पर मुझे नींद नहीं आ रही थी । सोचने लगी क्या हो सकता है । उन दिनों ब्योम्केश बख्शी का सीरियल बड़ा चल रहा था । कोई भूत काले कपड़ो वाला लम्बे नाखुनो वाला अंदर से खरोच रहा है की कोई बाहेर निकले आजाद करदे । .... अपनी सोच से मै खुद घबरा कर चादर मुह तक उड़स कर सो गयी
अगले दिन मम्मी सुबह चिल्लाई - अरे उठो स्कूल नहीं जाना ? चलो एक एक कर नहाने जाओ
अलमारी बाथरूम के पास हीखड़ी थी ।रोबिन के कान में मै बोली - भाई भूत अलमारी से निकल के आएगा जब तू नहायेगा शावर के पास ..... हु हाहाहा
वो रोया - हु हु मम्मी..... देखो सोनिया मुझे डरा रही है
मम्मी - चुप होजा भूत वूत कुछ नहीं होता सोनिया.. मरूंगी तुझे मै अगर इससे डराया तो !
वो आँखें दिखाती हैं तो मै हँसती हु । चल मै जाती हू । नहा के तैयार हुए और स्कूल को भागे । दोपहर को छुट्टी हुई तो फर वही अलमारी और उसका भूत दिमाग में तैरने लगा । आखिर खुलती क्यों नहीं ?? मम्मी भी कोशिश करने लगी बोली - अरे है क्या इस मुई अलमारी में ?? पर जोर अजमाइश बेकार रही
मम्मी पुरानी पड़ी है लॉक में जंग लग गयी है - मैंने कहा
हम्म तेरे पापा चाभी वाले को लेते आयेंगे फोन करदे
- मम्मी ऐसे बोल के खाना परोसने चली गयी
मै फोने पर पापा को बोल के खाने बैठी तभी
खड़क खडक ।।। आवाज आई हम सब बच्चे चोंक गए ..
एक चुहिया इतनी आवाज नहु कर सकती .... अब डरे बढ़ने लगा था ।
अंजू - मम्मी उह्ह उह्ह हमको यहाँ नहीं रहना वापिस चलो पुराने घर
मम्मी ने समझाया - बेटा कुछ नहीं है तुम बेकार डर रहे हो
दुसरे कमरे मे मम्मी पापा को फोने पर धीरे से बोली - सुनो जी । कोई पंडित को लेते आना हवन रखवा लेते है
उधर से हां कहे होंगे पापा
शाम हवन की तयारी होने लगी । चावल रोली मोली सामग्री फल और हवन कुंड में लकड़िया रख के पंडित जी और हम सब बैठ गए हवन पूरा हुआ तो अंजू रोबिन बाहर खेलने चले गए । मम्मी पंडित जी से बोली - आप भूत बाधा भी शांत करते हैं क्या पंडित जी ?
पंडित जी हां में सर हिलाए और बोले - हाजी पर उसके 5000 लगेंगे ।
पापा - क्या बात है ? कैसा भूत कैसी बाधा ? ये 5000 किस चीज़ के ? आपसे 500 में बात हुइ थी न !
मम्मी पापा को टोकी - अरे नया घर है ये अल्मारी कब से बंद पड़ी है इसको या तो बाहर फेंकवाओ या बाधा उतरवा कर ही खुलवाओ
पापा परेशान - उसमे कुछ नहीं है कपड़ो के सिवा हरमिंदर जी ( माकन के पिछले मालिक ) से बात हो चुकी है । तू बेकार में भूत भूत कर रही है
पंडित बीच में ही - मै जाऊ या रुकूँ ?
मम्मी - आप रुकिए न ।
फिर पापा की तरफ - बात को समझिये बच्चो का घर है 4 पैसे फालतू चले जाये क्यों मुसीबत मोल लेते हैं । एक बार करवा लेने दो न
पापा -( सोच कर ) ठीक है पंडित जी 200 से एक रूपया ज्यादा नहीं दूंगा ।
पंडित - हैं !!! श्रीमान जी 1000 तो होते हैं कम से कम
पापा - वो आप सोच लो वरना चलो छोड़ आऊ
पंडित जी - अच्छा 500 में कर दूंगा
पापा - ठीक है क्या क्या लाना है ?
पंडित कागज़ पर लिख के दे देते हैं और पापा सामान लेने चले जाते हैं
मम्मी अलमारी की तरफ इशारा करती हैं - वो अलमारी है । मुई ने कल से चैन नहीं लेने दिया
पंडित - देखता हू । मैंने तो भूत डायन सब से पानी भरवा रखा है । आप फिकर न करें
थोड़ी देर में पापा सब सामान ले आये । थाली में रोली भर के राखी बिच में एक निम्बू लोटे में कलावा बंधा पानी से भर के अलमारी के पास रख दिया
इक कला कपडा उसपर नारियल सिन्दूर छिड़क कर पंडित जी - बच्चो को बाहर भेज दो
मम्मी मुझे जाने का इशारा करती है । पर मै बहार की तरफ जाकर ओट से
देखने लगती हु
पंडित मंत्रो जाप शुरू करते हैं पापा मम्मी पास खड़े चुपचाप देख ते रहते है
पंडित जी - जाइये चाभी वाले को बुलाइए
पापा बहार की तरफ आते देख में दूसरी तरफ छुप गयी । चाभी वाला आया और अलमारी में बदल बदल के चाभी घूमने लगा
खड़क ..... खुली !
पंडित सामने खड़ा और जोर से मंत्र पढने लगा
चाभी वाला भी डरा धीरे से दरवाजा खुला तो
हाय ।। टन से थाली गिर गयी और पंडित जी चिल्लाये
एक मोटा चूहा पंडित जी पर उछाल के किसी कोने में भाग गया
पापा जोर जोर से हसने लगे - हाहाहा
देख भूत पकड़ा गया !
मम्मी खिस्याई - हुह्ह
मै भी ओट से निकल के हँसने लगी ।
पापा - लो पंडित जी 500 रूपये और चलते बनो
अज्जी बात तो हज़ार रूपये की हुई थी 500 तो हवन के हुए बस ! - पंडित
पापा - तो बात भी भूत भगाने की हुई थी चूहा भागने की नहीं
पंडित जी मुह लटका कर चल दिए
मम्मी उनको रोकी - अजी ऐसा क्या करते हो 200 रूपये हाथ में पकडिये और ख़ुशी ख़ुशी जाईये
पंडित जी मारे जी से मुस्कुराये और चले गए ।
रोबिन अंजू डरे डरे से घर आये और सारा किस्सा सुन के कई दिनों तक लोटपोट होते रहे
पर आज भी रोबिन उस कमरे में नहीं सोता जहाँ अलमारी रखी हुई है ।
**** इति ****
टिप्पणियाँ